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Monday, 19 March 2012

महिला सुरक्षा का नया फरमान – नारी हित की चाह या सुरक्षा तंत्र की नाकामी?


हाल ही में गुड़गांव के एक पब में काम करने वाली महिला जब देर रात अपने काम से घर लौट रही थी तो उसे अगवा कर गैंग रेप किया गया। इस घटना के बाद हरियाणा पुलिस के डिप्टी कमिश्नर ने पंजाब शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1958 लागू कर सभी वाणिज्यिक संस्थानों को यह निर्देश जारी कर दिया कि अगर वह अपनी महिला कर्मचारियों से रात को आठ बजे के बाद काम करवाते हैं तो उन्हें पहले श्रम विभाग से इसके लिए अनुमति लेनी होगी।

यूं तो दिन के समय भी महिलाएं खुद को सुरक्षित नहीं मान सकतीं लेकिन रात के समय उनके साथ होने वाली बलात्कार और छेड़छाड़ जैसी आपराधिक वारदातें और अधिक बढ़ जाती हैं। महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करवाने में हमारे पुलिसिया तंत्र की असफलता किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में गुड़गांव का एक ऐसा मामला सामने आया है कि जिसके बाद पुलिस और प्रबंधन की नाकामी में शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। देर रात महिला के साथ गैंगरेप जैसी घृणित वारदात के बाद पुलिस ने यह फरमान जारी कर दिया है कि अगर रात को आठ बजे के बाद महिलाओं से काम करवाना है तो पहले श्रम विभाग से अनुमति लेनी होगी।

मीडिया और महिला आयोग पुलिस के इस फरमान की कड़ी आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह कदम यह साफ प्रमाणित करता है कि जिन लोगों के हाथ में हमारी सुरक्षा का जिम्मा है वह खुद अपनी हार मान चुके हैं। इनके हिसाब से तो अगर रात को आठ बजे के बाद किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो इस घटना की जिम्मेदार वह स्वयं होगी। यह अधिनियम महिलाओं को सुरक्षा का आश्वासन देने के स्थान पर उनके काम को और मुश्किल बना देगा। आज की महिलाएं पुरुषों के समान मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रयत्न कर रही हैं तो ऐसे में उनकी सुरक्षा की गारंटी लेने की बजाय उनके अधिकारों पर चोट करना कहां तक सही है?

वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस द्वारा उठाए गए इस कदम की सराहना कर रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि महिलाओं का देर रात तक बाहर रहना अपराध को दावत देने जैसा है। इन लोगों का तर्क है कि महिलाओं को सबसे पहले अपनी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए। यौन-उत्पीड़न और आपराधिक वारदातों पर लगाम लगाने के लिए स्वयं महिलाओं को ही आगे आना पड़ेगा, हर समय पुलिस और प्रबंधन पर आरोप लगाना युक्तिसंगत नहीं है।

उपरोक्त चर्चा के आधार पर कुछ गंभीर सवाल उठते हैं, जिन पर विचार किया जाना नितांत आवश्यक है:
1क्या हमारा सुरक्षा तंत्र महिलाओं की सुरक्षा करने में पूरी तरह असफल हो चुका है?
2. अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो क्या वह स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है, इस घटना का दोष पुरुष को नहीं दिया जाना चाहिए?
3. क्या पंजाब शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1958 लागू करने के बाद रात आठ बजे से पहले महिलाएं खुद को सुरक्षित मान सकती हैं?
4. क्या पुलिस और सुरक्षा प्रबंधन इस बात की गारंटी लेते हैं कि अब दिन के समय कोई महिला किसी दरिंदे की घृणित मानसिकता का शिकार नहीं होगी?

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